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Revolution orResistance with respectful but ignoring manner!!

विनयताके साथ किसी भी सन्दर्भमें अनादर करते हुवे आन्दोलन करना


सविनय अवज्ञा आन्दोलन

अगर इन शब्दोंका सरल और आसान सा मतलब कहें तो 'गाँधीगीरी'!! हमने मुन्नाभाईमें संजय दत्तको 'गाँधीगीरी' करते हुए देखा है। हमने देखा है की पहेले मुन्नाभाई एक बदमास गुंडा हुवा करता था और जैसे ही उसे गांधीजी दिखने लगे वैसे ही उसके स्वभाव और कारोबारमें बदलाव आया!!


लेकिन ये गाँधीगीरी है क्या? क्या है येसविनय अवज्ञा आन्दोलन??


इसे समजनेके लिए हमें चलना पड़ेगा १९४० के साल में!!


आओ हम ले चलते है आपको १९वी सदीके पूर्वार्धमें!!


इसवी सन१ ९ २ ० में 'जलियांवाला बाग़ हत्याकांड'के बाद, महात्मा गांधीजीने सम्पूर्ण स्वराजका नारा लगाया, फिरंगियोको हिंदुस्तान छोड़नेको मजबूर करनेके लिए हिंदुस्तानकी जनताको फिरंगियोके साथ किये जाते सारे व्योवार-कारोबार बंध करनेको समजाया .


अहिंसक रूपसे असहकारका ये आन्दोलन जिसे आज हम "सविनय अवज्ञा आन्दोलन" कहेते है!!


इस आंदोलनका तात्पर्य एक ही था, फिरंगियोके साथ किये जाते सारे व्योह्वर-कारोबारका अहिंसक बहिस्कार!!


सुरु सुरुमें फिरंगियोको ये समझ नहीं आया, ना इस आन्दोलनपे ज्यादा ध्यान दिया; लेकिन जब शहर-शहर और गॉव-गॉवमें ये आन्दोलन लगा तो फिरंगियोकी नींद टूटी!!


इस आन्दोलनके जरिये गांधीजीने सन्देस दिया:


हर ऐसी चीझ जो विदेशसे आती हो उसका बहिस्कार!! हिंदुस्तानकी प्रजाने ऐसी चिझोकी होली जलाई!! विदेशसे आनेवाले कपडे और हर सामानका बहिस्कार किया, जब विदेशसे आनेवाला सामान बिकना बंध हुवा तो विदेशी कंपनिया बेकार हवी, विदेशमें उनके कर्मचारी बेकार हुवे!! विदेशके कर्मचारियोंने भी असहकारके आन्दोलनका साथ दिया!!


सबसे बड़ा था विदेशी कपडेके प्रति आन्दोलन!! गांधीजीने कहा, "घर घरमें चरखा हो, गॉव-शहरमें हाथशाळ; हमारा कपड़ा हम बनाये; खादीके वस्त्र ही करे परिधान!!"


बात यहाँसे नहीं रुकी, "नमक"के कारोबारपे फिरंगियोका अधिकार था, गांधीजीने अहमदाबाद से"दांडी कूच" करते हुवे "नमकका सत्याग्रह" किया। ठीक इसी ताराहा बिहारमें "नील(गुली)का सत्याग्रह" किया! गुजरातमें खेडा जिलेमें "तमाकूका सत्याग्रह" किया।


शायद हम किसीने "गाँधी" फिल्म देखि हो, ये सत्याग्रह देखा हो, लोग फिरंगियोके हाथोका खा रहे थे, घायल होके गिर रहे थे, घायलोको स्वयंसेवक ले जा रहे थे और घायलोकी जगहपे दूसरे सत्याग्रही आ रहे थे, सारे मार खा रहे थे मगर प्रतिकार नहीं कर रहे थे!!


बस ये ही थी "गाँधीगीरी "!!


लेकिन आज ये"गाँधीगीरी " कोई नहीं जानता! विदेशी कंपनिया अपना माल बेचनेको उतर आयी है "धीमत" बन कर, भारतके मिल-कारखाने-दुकाने और छोटे कारोबारी ख़तम हो रहे है और विदेशी कंपनिया हमें लूटने और हमें फिरसे गुलाम बनाने अपने हथकन्डे आझमा रही है!!


आज भी हम फिरंगी याने अंग्रेजोंके गुलाम है!!


हमारी हिन्दी राष्ट्रभाषाके शब्द "सविनय अवज्ञा आन्दोलन"का मतलब नहीं समझ शकते!! मतलबको छोड़ो इन शब्दोंका उच्चार भी नहीं कर शकते!!


"पित्ज़ा-बर्गर, पेप्सी और कोक; लूटा रहे है विदेशी विनिमय भारतके लोग!"

"अबटारगेट, आईकिया और वोलमार्ट, आयेंगे लुन्टने भारतकी बाझारे थोक !!"

"जागो मेरे भारतवासी जागो, अब कोई गाँधी नहीं लायेगा

"गाँधीगीरी"से रोक!!"

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Wiki User

12y ago

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